Shikha Arora

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लेखनी प्रतियोगिता -23-Mar-2022 -मकान


आज फिर वीरान अपना मकान देखा ,
गली को भी बड़ा सुनसान देखा |
चंचल, शोख , हसीं खनकती थी कभी, 
परिंदा भी तो नहीं वहां घूमता अभी |
प्यार का आंचल लहराता रहता था ,
निर्मल झरना सा बहता रहता था , 
आज उस मकान को हमने उदास देखा |
बेगाना भी यहां कभी अपना लगता था ,
अनजानो से कभी डर नहीं लगता था ,
लोगों का जमघट रहता था चारों तरफ ,
खाने की खुशबू फैलती थी हर तरफ ,
उस रसोई को हमने आज बेजार देखा |
फूलों की डाल पर तितलियों का मंडराना ,
बसंत के आते ही कलियों का मुस्काना |
प्रीत के बंधन को आगोश में लेना ,
हरियाली की छटा हर तरफ बिखरना ,
आज मौसम में पतझड़ का शबाब देखा | 
ख्वाबों में भी जब लेती थी अंगड़ाई ,
रहती थी गालों पर रंगत सी छाई |
अमराई में फूलों जैसा होता मचलना, 
धीमे धीमे गिरते हुए फिर संभलना ,
आज उस नवयौवना को होते बेजान देखा |
ख्वाबगारों ने बनाई थी जहा अपनी जगह ,
मद्धम मद्धम चलते-चलते आई थी सुबह |
उजड़ गया चमन ए गुलिस्तान अब तो ,
बिछड़ गया उस घर का दावेदार अब तो ,
अंधकारों में डूबता हुआ हमने आंगन देखा |
आज फिर वीरान होते हुए अपना मकान देखा ,
गली को भी हमने बड़ा ही सुनसान देखा ||

प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)

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12 Comments

Punam verma

24-Mar-2022 09:48 PM

Very nice

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Seema Priyadarshini sahay

24-Mar-2022 06:10 PM

बहुत खूबसूरत

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Renu

24-Mar-2022 10:14 AM

बेहतरीन रचना

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